आदिकाल से ही नवरात्रि को सनातन धर्म का सबसे पवित्र और शक्ति दायक पर्व माना गया है। एक वर्ष में चार नवरात्रि दो गुप्त और दो सामन्य कहे गए हैं। गुप्त नवरात्रि आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा और वर्षा ऋतु के मध्य आरंभ होता है। यह नवरात्रि गुप्त साधनाओं के लिए परम श्रेष्ठ कहा गया है। इस समय की गई साधना जन्मकुंडली के समस्त दोषों को दूर करने वाली तथा चारों पुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और कोक्ष को देने वाली होती है। इसका सबसे महत्वपूर्ण समय रात्रि 12 बजे से सूर्योदय तक अधिक प्रभावशाली बताया गया है।

गुप्त नवरात्रि का संबंध सूर्य संक्रांतियों से
निगम शास्त्र में संपूर्ण विश्व की रचना का आधार सूर्य को माना गया है। ‘सूर्य रश्मितो जीवो भी जायते’ अर्थात- सूर्य की किरणों से ही जीव की उत्पत्ति हुई अतः सूर्य ही जगतपिता है। आषाढ़ के शुक्ल पक्ष के नवरात्रि में सूर्य का निवास ‘अनाहत चक्र’ में होता है जिससे इसका वर्ण अरुण होता है। यही अरुण वर्ण शक्ति का प्रतीक है। इसके बारह दल बारह राशियों के प्रतीक बताए गए हैं। सूर्य की संक्रांतियों के अनुसार ही नवरात्रि पर्व माना गया है जैसे, गुप्त नवरात्रि आषाढ़ संक्रांति और मकर संक्रांति के मध्य पढ़ते हैं यह सायन संक्रांति के नवरात्रि हैं जिनमें मकर संक्रांति उत्तरायण और कर्क संक्रांति दक्षिणायन की होती है।