आखिरकार चीन को वही करना पड़ा जो उसे बहुत पहले कर लेना चाहिए था। गलवां घाटी में ड्रैगन ने न सिर्फ अपने तंबू उखाड़े बल्कि सैनिकों को भी पीछे भेजने पर मजबूर होना पड़ा। दुनियाभर के सामरिक विशेषज्ञों का कहना है कि 15 जून की घटना के बाद लद्दाख में एलएसी पर मजबूत सैन्य तैनाती और लगातार अडिग रूप से भारत उसे करारा जवाब दे रहा था। साथ ही विस्तार वादी रूप और कोरोना के कारण दुनिया भर में हो रही की किरकिरी से भी चीन भारी दबाव में था।
मगर इसके बावजूद वह सीमा पर भारत से उलझ कर अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहा था। लेकिन इस बार उसका यह दांव उल्टा पड़ गया। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के आकलन के अनुसार, 1962 का जख्म हरा करके चीन ने खुद का ही नुकसान कराया है। उसकी वजह से न केवल अमेरिका-भारत की दोस्ती बढ़ी बल्कि भारत के साथ तनाव उसे और महंगा पड़ सकता है।